युद्ध, मनुष्य का शाश्वत स्वभाव।
विश्व युद्ध, मानव स्वभाव का चरम बिन्दु।
दो बार इस चरमोत्कर्ष को प्राप्त करने के बाद, क्या अब एक बार फिर..?
कौन सी रणभूमि में लड़ा जाएगा यह तीसरा विश्व युद्ध?
ठोस जमीन पर? तरल समुद्र में? विरल आकाश में?.. या लड़ा जाएगा किसी उथल-पुथल भरे मानवीय मानसपटल पर?
पर क्या होगा जब, इंसानी दिमाग की गहराइयों में पनपने वाली यह जंग, ज़मीन पर उतरेगी तबाही बनकर?
एक कहानी, जो जितनी काल्पनिक है, उतनी ही सच भी।
जितनी शांत है, उतनी ही विनाशकारी भी। जितनी नई है उतनी ही पुरानी भी।
कहानी एक सभ्यता के अंत की,और अंत की बार-बार पुनरावृत्ति की …. WW3- एक दार्शनिक द्वंद।
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